नयी दिल्ली : 29 अप्रैल: ‘गाओ, गाओ-ओ कवि ऐसा,/जिससे टूटे और निराश लोग/जीवन को जीने योग्य समझें’
ऐसा आह्वान करनेवाले कवि विजेंद्र को कोरोना ने हमसे छीन लिया। वे 86 साल के थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी विजेंद्र मुख्यतः कवि थे किंतु गद्यकार, चित्रकार और संपादक के रूप में भी उनका योगदान स्मरणीय है। उनके कविता-संग्रहों में प्रमुख हैं: ‘त्रास’, ‘ये आकृतियां तुम्हारी’, ‘चैत की लाल टहनी’, ‘धरती कामधेनु से प्यारी’, ‘ऋतु का पहला फूल’, ‘उदित क्षितिज पर’, ‘पहले तुम्हारा खिलना’। इनके अलावा ‘अग्निपुरुष’ और ‘क्रौंच वध’ शीर्षक काव्य-नाटक, ‘कविता और मेरा समय’ तथा ‘सौंदर्यशास्त्र : भारतीय चित्त और कविता’ शीर्षक आलोचना-पुस्तक भी उनके सृजन-संसार में शामिल हैं। वे लंबे समय तक कविता-केंद्रित ‘ओर’ पत्रिका निकालते रहे जो बाद में ‘कृति ओर’ के नाम से जारी रही। वे बहुत अच्छे पेंटर भी थे और उनकी पेंटिंग्स पत्रिकाओं में तथा पुस्तकों के मुखपृष्ठ पर अक्सर देखी जाती रही हैं।
विजेंद्र जनवादी लेखक संघ से शुरुआत से ही जुड़े रहे थे और वर्षों वे संगठन की केंद्रीय कार्यकारिणी में तथा उपाध्यक्ष के पद पर रहे। संगठन की पत्रिका ‘नया पथ’ को उनका सहयोग बराबर मिलता रहा। ‘नया पथ’ को एकाधिक बार उनकी कविताएं और विश्लेषणात्मक लेख छापने का सौभाग्य मिला। उनकी पेंटिंग से बनाया गया एक मुखपृष्ठ पत्रिका के सबसे यादगार मुखपृष्ठों में से है।
जनवादी लेखक संघ अपने वरिष्ठ साथी के जाने से शोक-संतप्त है। हम कवि-विचारक विजेंद्र की स्मृति को सादर नमन करते हैं।
मैं हूं डॉ के के वेलायुधन।पत्रिका का ग्राहक रहा पहले। अच्छे लेखों और विश्लेषण से स्तरीय पत्रिका थी। मंगल कामनाएं।