नयी दिल्ली 5 अक्टूबर 2021 : हिंदी दलित साहित्य के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर, युवा लेखक मुकेश मानस का असमय निधन हिंदी साहित्य और जनवादी आंदोलन से जुड़े लोगों के लिए एक बड़ा आघात है।
15 अगस्त 1973 को बुलंदशहर में जन्मे मुकेश मानस की उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से हुई और इसी विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज के हिंदी विभाग में वे अध्यापन कर रहे थे। एक संवेदनशील कथाकार, कवि, संपादक और विचारशील वक्ता के रूप में उनकी पहचान थी। उनका लेखन वामपंथी विचारधारा से होते हुए आंबेडकरवाद की ओर मुड़ा। विद्यार्थी जीवन से ही वे ‘अंकुर’ नामक स्वयंसेवी संस्था से जुड़े, साथ ही दिल्ली के दक्षिणपुरी में नौजवान भारत सभा के तहत जनवादी मुहिम को उन्होंने आगे बढ़ाया। 2011 में उन्होंने ‘आरोही बुक ट्रस्ट’ की स्थापना की, ‘समय संज्ञान’ नामक मंच का निर्माण किया और इसी वर्ष ‘मगहर’ पत्रिका का संपादन भी शुरू किया। उनकी रचनाएं हैं – ‘धूप है खिली हुई’ (कविता संग्रह/2020), ‘भीतर बुद्ध है’ (कविता संग्रह/2014), ‘दलित साहित्य के बुनियादी सरोकार’ (आलोचना/2013), ‘हिंदी कविता की तीसरी धारा’ (आलोचना/2011), ‘पंडिज्जी का मंदिर’ (कहानी संग्रह/2012), ‘कागज एक पेड़ है’ (कविता संग्रह/2010), ‘मीडिया लेखन: सिद्धांत और व्यवहार’ (2006), ‘उन्नीस सौ चौरासी’ (कहानी संग्रह/2005), ‘पतंग और चरखड़ी’ (कविता संग्रह/2001), ‘सावित्रीबाई फुले’ (2012), ‘अंबेडकर का सपना’ (2012), ‘दलित समस्या और भगत सिंह’ (2011)। उनके द्वारा किये गये प्रमुख अनुवाद हैं: एम एन रॉय कृत ‘संस्कृति के दौर का भारत’ (2006), कांचा इलैया कृत ‘मैं हिंदू क्यों नहीं हूं’ (2003)।
पोस्ट कोरोना इफ़ेक्ट के तौर पर मुकेश मानस का लीवर बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इसी का इलाज चल रहा था जिसके दौरान 4 अक्टूबर 2021 को उनका इंतकाल हुआ। अभी उनके लेखन में जो निखार आया था, उससे बनने वाली बहुत सारी संभावनाओं पर विराम लग गया । दलित लेखन के परिदृश्य पर उनका लेखन, उनका विचार सदैव अंकित रहेगा। जनवादी लेखक संघ दिवंगत मुकेश मानस को हृदय से पुष्पांजलि अर्पित करता है और उनके परिवार के प्रति गहन संवेदना व्यक्त करता है।