सिविल सेवाओं के इम्तहान; हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएं

सिविल सेवाओं के इम्तहान में मानविकी के विषयों हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की उपेक्षा के खिलाफ पिछले एक साल से चल रहा आंदोलन इस महीने एक नए जुझारू दौर में पहुँच गया है।  आन्दोलनरत विद्यार्थियों के अनुसार, २०११ में लागू हुए नए पैटर्न ने यह सुनिश्चित किया है कि गाँवों-क़स्बों से आने वाले और भारतीय भाषाओं को अपना माध्यम बनाने वाले विद्यार्थियों का चयन कम से कम हो, साथ ही मानविकी के मुकाबले प्रबंधन और इंजीनियरिंग पढ़ने वाले ही सिविल सेवाओं में घुस पाएं।  विद्यार्थियों के यह शिकायत निराधार नहीं है।  २०११ के पहले और बाद के आंकड़ों से इसकी पुष्टि होती है। जनवादी लेखक संघ भारतीय भाषाओं और मानविकी के विषयों की इस उपेक्षा पर अपना दुःख और आक्रोश, तथा आन्दोलनरत विद्यार्थियों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है। हम संघ लोक सेवा आयोग और केंद्र सरकार से इन विद्यार्थियों की जायज़ मांगों की दिशा में पहल करने की अपील करते हैं।  गत ६ जुलाई से मुखर्जी नगर में भूख हड़ताल पर बैठे सैकड़ों विद्यार्थियों का, जिनमें से अनेक युवक-युवतियां आमरण अनशन पर हैं, क्रांतिकारी अभिनन्दन करते हुए हम मीडिया से भी यह उम्मीद करते हैं कि उनके मुद्दे को वह बड़े दायरे तक ले जाने में अपनी भूमिका निभाये।
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह
(महासचिव)
संजीव कुमार
(उप-महासचिव)

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