द’ डिक्टेटर का समापन भाषण

 

(महान फ़िल्मकार चार्ली चैपलिन की कालजयी फिल्म ग्रेट डिक्टेटर, जो हिटलर के ऊपर बनाई गई थी, के अंतिम अंश में हिटलर भाषण देता है. पर भाषण देने वाला यह यहूदी व्यक्ति (चार्ली चैपलिन), असली हिटलर (चार्ली चैपलिन) के ऐन वक्त पर गुम हो जाने के कारण हमशक्ली की वजह से हिटलर के मंच पर आता है. फासीवादी दमन का शिकार यह हमशक्लयहूदी अपने भाषण में जो कहता है वह विश्व मानवता की विजय का, उसकी सदाकांक्षा का अद्भुत कलात्मक सार है. किंतु वैश्विक मनुष्यता की विरोधी शक्तियों को, जो फासीवाद से लड़ने का दिखावा करती रहीं हैं, यह भाषण पसंद नहीं आया था. और आज भी बहुतों को पसंद नहीं आएगा. खुद चैपलिन ने इसके बारे में लिखा हैलेकिन समीक्षाएं जो थीं, वे मिलीजुली थीं। अधिकतर समीक्षकों को अंतिम भाषण पर एतराज़ था। न्यूयार्क डेली न्यूज ने लिखा कि मैंने दर्शकों की तरफ साम्यवाद की उंगली उठायी है। हालांकि अधिकांश समीक्षकों ने भाषण पर ही एतराज़ किया था और कहा कि ये चरित्र में नहीं था। आम तौर पर जनता ने इसे पसन्द किया, और मुझे उसकी तारीफ में कई खत मिले।

डिक्टेटर का समापन भाषण

 

मुझे खेद है, लेकिन मैं शासक नहीं बनना चाहता। ये मेरा काम नहीं है। किसी पर भी राज करना या किसी को जीतना नहीं चाहता। मैं तो किसी की मदद करना चाहूंगा – अगर हो सके तो – यहूदियों की, गैर यहूदियों की – काले लोगों की – गोरे लोगों की।

हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं। मानव होते ही ऐसे हैं। हम एक दूसरे की खुशी के साथ जीना चाहते हैं – एक दूसरे की तकलीफ़ों के साथ नहीं। हम एक दूसरे से नफ़रत और घृणा नहीं करना चाहते। इस संसार में सभी के लिए स्थान है और हमारी यह समृद्ध धरती सभी के लिए अन्न जल जुटा सकती है।

‘जीवन का रास्ता मुक्त और सुन्दर हो सकता है, लेकिन हम रास्ता भटक गये हैं। लालच ने आदमी की आत्मा को विषाक्त कर दिया है – दुनिया में नफ़रत की दीवारें खड़ी कर दी हैं – लालच ने हमें ज़हालत में, खून खराबे के फंदे में फंसा दिया है। हमने गति का विकास कर लिया लेकिन अपने आपको गति में ही बंद कर दिया है। हमने मशीनें बनायीं, मशीनों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन हमारी मांगें और बढ़ती चली गयीं। हमारे ज्ञान ने हमें सनकी बना छोड़ा है; हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम बना दिया है। हम बहुत ज्यादा सोचते हैं और बहुत कम महसूस करते हैं। हमें बहुत अधिक मशीनरी की तुलना में मानवीयता की ज्यादा ज़रूरत है। चतुराई की तुलना में हमें दयालुता और विनम्रता की ज़रूरत है। इन गुणों के बिना, जीवन हिंसक हो जायेगा और सब कुछ समाप्त हो जायेगा।

‘हवाई जहाज और रेडियो हमें आपस में एक दूसरे के निकट लाये हैं। इन्हीं चीज़ों की प्रकृति ही आज चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है – इन्सान में अच्छाई हो – चिल्ला चिल्ला कर कह रही है – पूरी दुनिया में भाईचारा हो, हम सबमें एकता हो। यहां तक कि इस समय भी मेरी आवाज़ पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच रही है – लाखों करोड़ों – हताश पुरुष, स्त्रियां, और छोटे छोटे बच्चे – उस तंत्र के शिकार लोग, जो आदमी को क्रूर और अत्याचारी बना देता है और निर्दोष इन्सानों को सींखचों के पीछे डाल देता है। जिन लोगों तक मेरी आवाज़ पहुंच रही है – मैं उनसे कहता हूं – `निराश न हों’। जो मुसीबत हम पर आ पड़ी है, वह कुछ नहीं, लालच का गुज़र जाने वाला दौर है। इन्सान की नफ़रत हमेशा नहीं रहेगी, तानाशाह मौत के हवाले होंगे और जो ताकत उन्होंने जनता से हथियायी है, जनता के पास वापिस पहुंच जायेगी और जब तक इन्सान मरते रहेंगे, स्वतंत्रता कभी खत्म नहीं होगी।

‘सिपाहियों! अपने आपको इन वहशियों के हाथों में न पड़ने दो – ये आपसे घृणा करते हैं – आपको गुलाम बनाते हैं – जो आपकी ज़िंदगी के फैसले करते हैं – आपको बताते हैं कि आपको क्या करना चाहिए – क्या सोचना चाहिए और क्या महसूस करना चाहिए! जो आपसे मशक्कत करवाते हैं – आपको भूखा रखते हैं – आपके साथ मवेशियों का-सा बरताव करते हैं और आपको तोपों के चारे की तरह इस्तेमाल करते हैं – अपने आपको इन अप्राकृतिक मनुष्यों, मशीनी मानवों के हाथों गुलाम मत बनने दो, जिनके दिमाग मशीनी हैं और जिनके दिल मशीनी हैं! आप मशीनें नहीं हैं! आप इन्सान हैं! आपके दिल में मानवता के प्यार का सागर हिलोरें ले रहा है। घृणा मत करो! सिर्फ़ वही घृणा करते हैं जिन्हें प्यार नहीं मिलता – प्यार न पाने वाले और अप्राकृतिक!!

‘सिपाहियों! गुलामी के लिए मत लड़ो! आज़ादी के लिए लड़ो! सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में यह लिखा है कि ईश्वर का साम्राज्य मनुष्य के भीतर होता है – सिर्फ़ एक आदमी के भीतर नहीं, न ही आदमियों के किसी समूह में ही अपितु सभी मनुष्यों में ईश्वर वास करता है! आप में! आप में, आप सब व्यक्तियों के पास ताकत है – मशीनें बनाने की ताकत। खुशियां पैदा करने की ताकत! आप, आप लोगों में इस जीवन को शानदार रोमांचक गतिविधि में बदलने की ताकत है। तो – लोकतंत्र के नाम पर – आइए, हम ताकत का इस्तेमाल करें – आइए, हम सब एक हो जायें। आइए, हम सब एक नयी दुनिया के लिए संघर्ष करें। एक ऐसी बेहतरीन दुनिया, जहां सभी व्यक्तियों को काम करने का मौका मिलेगा। इस नयी दुनिया में युवा वर्ग को भविष्य और वृद्धों को सुरक्षा मिलेगी।

‘इन्हीं चीज़ों का वायदा करके वहशियों ने ताकत हथिया ली है। लेकिन वे झूठ बोलते हैं! वे उस वायदे को पूरा नहीं करते। वे कभी करेंगे भी नहीं! तानाशाह अपने आपको आज़ाद कर लेते हैं लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं। आइए, दुनिया को आज़ाद कराने के लिए लड़ें – राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़ डालें – लालच को खत्म कर डालें, नफ़रत को दफ़न करें और असहनशक्ति को कुचल दें। आइये, हम तर्क की दुनिया के लिए संघर्ष करें – एक ऐसी दुनिया के लिए, जहां पर विज्ञान और प्रगति इन सबकों खुशियों की तरफ ले जायेगी, लोकतंत्र के नाम पर आइए, हम एक जुट हो जायें!

हान्नाह! क्या आप मुझे सुन रही हैं?

आप जहां कहीं भी हैं, मेरी तरफ देखें! देखें, हान्नाह! बादल बढ़ रहे हैं! उनमें सूर्य झाँक रहा है! हम इस अंधेरे में से निकल कर प्रकाश की ओर बढ़ रहे हैं! हम एक नयी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं – अधिक दयालु दुनिया, जहाँ आदमी अपनी लालच से ऊपर उठ जायेगा, अपनी नफ़रत और अपनी पाशविकता को त्याग देगा। देखो हान्नाह! मनुष्य की आत्मा को पंख दे दिये गये हैं और अंतत: ऐसा समय आ ही गया है जब वह आकाश में उड़ना शुरू कर रहा है। वह इन्द्रधनुष में उड़ने जा रहा है। वह आशा के आलोक में उड़ रहा है। देखो हान्नाह! देखो!

(साभार, अनुवाद : सूरज प्रकाश)

 


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द’ डिक्टेटर का समापन भाषण — 2 Comments

  1. यह भाषण अपने आप में अपनी मिसाल तो है ही एक अद्भुत फ़िल्म का सर्वकालीन महान हिस्सा भी है ।
    यह फ़िल्म ग्रेट डिक्टेटर, इस बात की भी मिसाल है कि कलात्मक सौंदर्य में कमीबेशी किये बिना, उपयोग में लाये जा रहे माध्यम को हल्का बनाये बिना अत्यंत सहजता और सुगमता से राजनीतिक सन्देश कैसे पहुंचाया जाना चाहिए ।
    चार्ली चैप्लिन इस विधा के बुध्द थे ।

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