जलेस की फे़सबुक से एक पोस्ट
‘मुझे अपनी फ़िक्र नहीं. बुनियादपरस्ती से लड़ने का एकमात्र तरीक़ा यही है कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लिखा जाए और अधिक रैलियाँ की जायें।‘
ये शब्द हैं बांग्ला कवयित्री मंदाक्रांता सेन के, जिन्हें हिन्दुत्ववादियों ने फे़सबुक पर गैंग-रेप की धमकी दी है। मंदाक्रांता सेन ने 19 मार्च को आदित्यनाथ के यूपी मुख्यमंत्री बनने पर लिखी गयी श्रीजात की कविता पर हिन्दुत्ववादियों के हमले की आलोचना की थी. हिन्दुत्ववादियों का कहना था कि श्रीजात की कविता ने हिन्दू भावनाओं को आहत किया है, इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए। मंदाक्रांता इस विवाद में श्रीजात के पक्ष में खड़ी रहीं और उन्होंने हिंदुत्ववादियों के खि़लाफ़ एक विरोध रैली में भी हिस्सा लिया. मंदाक्रांता ने 2015 में असहिष्णुता के ख़िलाफ़ साहित्य अकादमी यंग राइटर्स स्पेशल अवार्ड भी वापस किया था।
जो लोग आलोचनात्मक नज़रिया रखनेवाली विचारशील स्त्रियों का सम्मान करने के बजाय उन्हें हर बार गैंग-रेप की धमकी देते हैं, किस मुंह से खुद को भारतीय संस्कृति के सबसे सजग रक्षक घोषित करते हैं जिसमें माना गया है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’।.उनके ऐसे कारनामों से उनकी ‘भारतीय संस्कृति’ की समझ का खोखलापन उजागर होता है। हे नक़ली रक्षको, शर्म करो! और स्यापा भी, कि श्रीजात बंदोपाध्याय और मंदाक्रांता सेन की लड़ाई थमेगी नहीं, इसमें और-और नाम शामिल होते जायेंगे।
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कल (31 मार्च 2017) दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में, जो कुछ दिनों पहले आरएसएस के विद्यार्थी विंग की गुंडागर्दी और जम्हूरियत-पसंद विद्यार्थियों-शिक्षकों के शानदार प्रतिरोध के कारण चर्चा में आया था, एक और निंदनीय घटना हुई। वहां के थिएटर-समूह ‘शून्य’ ने नुक्कड़-नाटकों का महोत्सव रखा था, जिसमें सात प्रविष्टियां आयीं थीं। एक दिन पहले नए-नए कार्यभार संभाले कामकाजी प्राचार्य ने आयोजकों को बुलाया और कहा कि उन्हें प्रविष्टि वाले सभी नाटकों की थीम बतायी जाये। सिनोप्सिस देखने के बाद प्राचार्य ने सात में से चार के प्रदर्शन की इजाज़त देने से मना कर दिया, क्योंकि उनमें राष्ट्रवाद या इसी तरह के मुद्दों पर विवाद होने की गुंजाइश थी। आज इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार प्राचार्य ने अपनी किसी भूमिका से इनकार किया है और कहा है कि आयोजकों ने ही उनके सामने यह बात रखी थी कि फलां-फलां प्रविष्टियों को इजाज़त नहीं दी जा सकती। प्राचार्य का यह दावा सफ़ेद झूठ है। रामजस कॉलेज के सूत्रों से पता चला है कि उन्होंने खुद आगे बढ़कर इस कारवाई को अंजाम दिया है।
यह प्रकरण बेहद शर्मनाक है. ज़िम्मेदार पदों पर बैठे हुए लोग अगर हिन्दुत्ववादियों की धमकियों के आगे ऐसी शर्मनाक सावधानियां बरतते रहेंगे और अपने-अपने स्तर पर सेंसरशिप लागू करते रहेंगे, तो भारत का संविधान पन्नों पर छपे हुए शब्द भर रह जायेगा।
यह जानना दिलचस्प होगा कि इजाज़त न मिलने वाले चार नाटकों की सिनोप्सिस क्या बताती है। एक नाटक है, ‘ट्रम्प कार्ड’, जो खालसा कॉलेज के समूह को पेश करना था. इसमें पंथ-पूजा के मारे लोग सुशासन और विकास के लिए एक मसीहा चुन लेते हैं और जो भी असहमत है, उसे राष्ट्रविरोधी घोषित कर दिया जाता है। दयाल सिंह कॉलेज के नाटक ‘जोकिस्तान’ में जोकिस्तान नाम की एक जगह है जहां लोग खुशी-खुशी रहते हैं और खूब चुटकुले सुनाया करते हैं। धीरे-धीरे कुछ ऐसा होता है कि उनकी सुख-शान्ति घटती जाती है। इसमें भारत और जोकिस्तान के बीच सादृश्य रचा गया है। गुरु गोविन्द सिंह कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के नाटक ‘सवाल तो उठेगा’ की सिनोप्सिस कहती है कि ‘अंग्रेज़ी के 26 अक्षरों का कोई भी कॉम्बिनेशन यह नहीं बता सकता कि भारत कितना असहिष्णु हो गया है। जहां भी ज़रूरत हो, सवाल उठाये जायें। नाटक इस पर केन्द्रित है।’ गार्गी कॉलेज के नाटक ‘मैं कश्मीर और आप? मैं मणिपुर’ में केंद्र और परिधि के सत्ता-संबंधों पर सवाल खड़े किये गये हैं।
रामजस कॉलेज के प्राचार्य ने ठीक वही किया जिसकी मुखालफ़त ये नाटक करते हैं। इनका प्रदर्शन न हो पाने से इनके प्रदर्शन की ज़रूरत और गहरे रंगों में रेखांकित होती है। इन्हें लिखने और तैयार करने वाले विद्यार्थी ही हमारे समय की सबसे बड़ी उम्मीद हैं, और उन पर बंदिशें लगाने वाले इस दौर के सबसे घिनौने चेहरे!