Janvadi Lekhak Sangh India Facebook की दीवार से :
गौरी लंकेश निडर और मुखर थीं, साथ ही अपनी आवाज़ को लोगों तक पहुंचाने का प्रबंध करने में कुशल भी. ‘गौरी लंकेश पत्रिके’ को सरकारी या कॉर्पोरेट क्षेत्र के विज्ञापनों की ज़रूरत नहीं पड़ती थी. अपने अन्य प्रकाशनों से, जिनमें प्रतियोगिता परीक्षा के लिए पत्रिका निकालने वाला गाइड प्रकाशन भी शामिल था, वे अपनी साहसिक पत्रकारिता का वित्तपोषण करती थीं. साम्प्रदायिक ताक़तों, विशेषकर आरएसएस-भाजपा और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ वे लगातार लिखती रहीं, और चूंकि उनकी पत्रकारिता के जीवन-स्रोत को काट देना इन ताक़तों के बस में नहीं था, इसलिए उनकी आवाज़ भी दबाई नहीं जा सकती थी. उन्हें चुप कराने का एक ही तरीक़ा हो सकता था – हत्या. उन्हें लगातार धमकियां मिल रही थीं और आख़िरकार उन धमकियों को अंजाम दे दिया गया.
क्या यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि उनकी हत्या किन्होंने करवाई होगी? बिलाशक, यह हिन्दुतावावादी शक्तियों द्वारा गठित गिरोहों का ही काम है जो श्री दाभोलकर, कॉमरेड पानसारे और प्रो. कलबुर्गी की हत्या के लिए भी ज़िम्मेवार हैं. ये आलोचनात्मक विवेक की आवाज़ को बर्दाश्त न करने वाले लोग हैं और इनकी राजनीतिक प्रणाली धौंस, धमकी, भीड़ की हिंसा और भाड़े के निशानचियों के हाथों कराई गयी हत्याओं पर टिकी है. पर ये भूल जाते हैं कि इनका हर ऐसा क़दम साम्प्रदायिक-फ़ासीवाद-विरोधी शक्तियों को अपने मतभेद भूलकर और निकट आने के लिए प्रेरित करता है.
जनवादी लेखक संघ गौरी लंकेश जैसे जुझारू जनवादी व्यक्तित्व को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देता है ।