रजनी तिलक नहीं रहीं

नयी दिल्ली : 31 मार्च : महत्वपूर्ण लेखिका, कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्ता और दलित मुक्ति आन्दोलन की सशक्त आवाज़ साथी रजनी तिलक नहीं रहीं. कल, आज रात दिल्ली के सेंट स्टीफेंस अस्पताल में उनका निधन हो गया.

हिन्दी को ‘अपनी ज़मीं अपना आसमान’ जैसी आत्मकथा और ‘पदचाप’, ‘हवा सी बेचैन युवतियां’, ‘अनकही कहानियां’ जैसे कविता-संग्रह देनेवाली रजनी तिलक भारत के उत्पीड़ित तबकों की आंगिक बुद्धिजीवी थीं. दलितों, स्त्रियों और दलित स्त्रियों के रोज़मर्रा के संघर्षों में शामिल रहते हुए अपने उन्हीं अनुभवों को दर्ज करने के लिए वे विभिन्न विधाओं में लेखन करती थीं. बामसेफ, दलित पैंथर की दिल्ली इकाई, अखिल भारतीय आंगनवाड़ी वर्कर एंड हेल्पर यूनियन, आह्वान थिएटर, नेशनल फ़ेडरेशन फ़ॉर दलित वीमेन, नेक्दोर, वर्ल्ड डिग्निटी फ़ोरम, दलित लेखक संघ और राष्ट्रीय दलित महिला आन्दोलन आदि के साथ उनका गहरा जुड़ाव रहा और इनमें से अनेक तो उनके प्रयासों से ही शुरू हुए. उत्पीड़न और अत्याचार से सम्बंधित 50 से अधिक घटनाओं की फैक्ट-फाइंडिंग टीम में शामिल होकर उन्होंने समकालीन इतिहास के दस्तावेज़ीकरण और उसके माध्यम से आन्दोलन को गति देने का काम किया. हिन्दी की दुनिया को सावित्री बाई फुले के महत्व से परिचित कराने में भी उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही.

रजनी तिलक का जाना हम सबके लिए अत्यंद दुखद है. जनवादी लेखक संघ उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है और यह आशा व्यक्त करता है कि उनका व्यक्तित्व बाद की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा-स्रोत बना रहेगा.

27 मार्च को वरिष्ठ मराठी दलित लेखक  और ‘अस्मितादर्श’ पत्रिका के संपादक औरंगाबाद निवासी गंगाधर पानतावणे का देहांत हो गया. जनवादी लेखक संघ उन्हें भी भावभीनी आदरांजलि अर्पित करता है.


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