हिंदी के वरिष्ठ आलोचक और जनवादी लेखक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक, साथी लल्लन राय के निधन की सूचना से जलेस परिवार शोक-संतप्त है। 1936 में जन्मे प्रोफ़ेसर राय हिमाचल विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से सेवा-निवृत्त थे। रीति-काव्य पर उन्होंने अपना शोध-कार्य किया था और आधुनिक साहित्य पर आलोचनात्मक लेखन करते रहे थे। यद्यपि वय के कारण सांगठनिक कार्यों में वे बहुत सक्रिय नहीं रह गये थे, हाल में हुए जलेस के नौवें राष्ट्रीय सम्मलेन (27-28 जनवरी 2018, धनबाद) में भी उन्हें केंदीय परिषद् का सदस्य चुना गया था.
जनवादी लेखक संघ साथी लल्लन राय को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है. वरिष्ठ साथी कांतिमोहन ने उन्हें याद करते हुए जो लिखा है, वह हमारी सामूहिक भावना का प्रतिनिधित्व करता है :
‘लल्लन राय मेरे सहयोगी और संघर्षोँ के साथी होने के अलावा मेरे मित्र भी थे। उनके जाने से वामपंथी साहित्यिक आंदोलन की तो अपूरणीय क्षति हुई ही है, मुझ जैसे अनेक लोगों को मित्र-वियोग का दुख भी झेलना पड़ेगा। भारत के पूर्वांचल में जन्मे और पनपे इस कर्मठ योद्धा की कर्मभूमि धुर पश्चिम में स्थित शिमला रही और उसने यहां एक सुदृढ़ वामपंथी आंदोलन खड़ा करने में उल्लेखनीय भूमिका निभायी। जनवादी लेखक संघ के शीर्ष नेतृत्व में वे उम्र में सबसे छोटे और मेरे बराबर के थे। जहां तक याद पड़ता है, हम दोनों का जन्म 1936 में ही हुआ था। उन्हें भरी जवानी में युवा पुत्र-वियोग का दारुण दुख झेलना पड़ा था और यही वह बिंदु था जिस पर उनके वज्र से कठोर और कुसुम से कोमल व्यक्तित्व के दर्शन हुए। सीने पर पत्थर रखकर डॉक्टर राय ने जिस तरह अपना धैर्य बनाये रखा, अपनी गर्भिणी पुत्रवधू को बेटी का दर्जा दिया और उसे पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा होने लायक़ बनाया, वह एक प्रेरणाप्रद प्रसंग है। इसी दौर में उनसे मेरा नियमित पत्र-व्यवहार हुआ और हमारा निकट परिचय मैत्री में परिणत हुआ। इधर कई बरसों से हम दोनों अपने बुरे स्वास्थ्य से लड़ रहे थे और जलेस में भी पहले की तरह सक्रिय नहीं थे। हम एक-दूसरे के संपर्क में भी नहीं थे कि आज अचानक यह समाचार मिला और मैं हतप्रभ हो गया। मैं इस मौक़े पर जलेस के युवतर साथियों का आह्वान करता हूँ कि वे साथी लल्लन राय के कर्मठ जीवन से प्रेरणा लेकर अपने-अपने संगठन को नूतन सक्रियता प्रदान करें। यही लल्लन राय को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।‘