रमणिका गुप्ता जी नहीं रहीं

नयी दिल्ली : 26 मा र्च : रमणिका गुप्ता जी का निधन हिन्दी भाषा और हिन्दी-उर्दू प्रदेश की तरक्क़ीपसंद-जम्हूरियतपसंद तहरीक़ के लिए एक बड़ा सदमा है. आज दिल्ली के मूलचंद अस्पताल में दोपहर बाद ३:०० बजे उनका इंतकाल हुआ. आनेवाली २२ अप्रैल को वे ९० वर्ष की हो जातीं.

रमणिका जी एक सक्रिय रचनाकार, सम्पादक और शोधार्थी होने के साथ-साथ उतनी ही व्यस्त सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता भी थीं. उन्होंने १६ काव्य-संग्रह, २ उपन्यास, १ कहानी-संग्रह, ३ यात्रा-संस्मरण और अपनी आत्मकथा ‘हादसे’ के अलावा गद्य की ११ और पुस्तकें लिखीं. दलित और आदिवासी साहित्य से सम्बंधित अनेक प्रतिनिधि संग्रहों का चयन-सम्पादन-अनुवाद भी उन्होंने किया. उनके द्वारा अनूदित पुस्तकों में शरण कुमार लिम्बाले की ‘दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र’ और गेल ओमवेट की ‘दलित विज़न’ भी शामिल हैं. स्वयं रमणिका जी की अनेक पुस्तकों के पंजाबी, उर्दू, तेलुगु आदि भाषाओं में अनुवाद हुए. दलित, आदिवासी और स्त्री मुद्दों पर उनके द्वारा संपादित किताबों की संख्या २८ है. गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान और आजीवन आदिवासी बंधु पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कारों से वे सम्मानित हुईं. लम्बे अरसे से रमणिका फाउंडेशन के ज़रिये दलित-आदिवासी मुद्दों पर नयी-नयी परियोजनाओं को सामने लाने वाली रमणिका जी ने फाउंडेशन की पत्रिका ‘युद्धरत आम आदमी’ को हाशिये के समाज का मुखपत्र-सा बना दिया था.

रमणिका जी जनवादी लेखक संघ की स्थापना के समय से ही संगठन के साथ लगातार जुड़ी रहीं. बिहार और बाद में झारखंड की इकाई गठित करने में उनका बड़ा योगदान था. गिरते स्वास्थ्य के कारण आने-जाने की पाबंदियों के बीच भी वे जलेस के कार्यक्रमों में यथासंभव भागीदारी करती रहीं. लम्बे अरसे से वे हिन्दी की साहित्यिक दुनिया में मौजूद सभी आंदोलनधर्मी धाराओं के बीच सेतु बनी हुई थीं. ऐसी रमणिका जी के न रहने से जो बड़ा खालीपन उपजा है, वह विचलित करने वाला है. जनवादी लेखक संघ उनकी स्मृति को नमन करते हुए अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता


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